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Showing posts from 2025
 हूबहू मुझ सा ही किरदार कोई है मुझमें। या तो मेरा लिया अवतार कोई है मुझमें।। मैं तो जानूँ हूँ गुनहगार कोई है मुझमें। लोग कहते हैं कि अबरार कोई है मुझमें।। मैं तो काफ़िर हूँ मुझे उस पे यकीं छोड़ो भी सब ये समझे हैं कि दीं-दार कोई है मुझमें।। शौक़ इतना है अदीबों से शनासायी  का मैं तो नादार हूँ ज़रदार कोई है मुझमें।। मेरे ही दिल मे मुझे मैं नहीं दिखता शायद तीरगी की बड़ी दीवार कोई है मुझमें।। आईना देख के मैं ख़ुद भी सहम उठता हूँ गोया मुझसे बड़ा खूँखार कोई है मुझमें।। छोड़ कर दैरोहरम मैक़दे चल देता है मैं नहीं शेख़ वो मयख़्वार कोई है मुझमें।। हूबहू/एक समान क़िरदार/ चरित्र, व्यक्तित्व, अबरार/पवित्र, नेकदिल काफ़िर/नास्तिक, दीं-दार/धार्मिक, अदीब/साहित्यकार, शनासाई/ परिचय, नादार/निर्धन, ज़रदार/धनवान, तीरगी/अँधेरा, गोया/जैसे कि, खूँखार/भयानक, दैरोहरम/मन्दिर-मस्जिद, मैकदा/शराबघर, मयख्वार/ शराबी सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 गुफ़्तगू क्या कहें पहल न हुई।। कुछ नई बात आजकल न हुई।  तुम ही छाये रहे ख़यालों में और मुझसे कोई ग़ज़ल न हुई।। हश्र जैसा नहीं हुआ कुछ भी बस क़यामत हुई अज़ल न हुई।। हाँ महल खंडहर हुआ होगा झोपडी यूँ कभी महल न हुई ।। इश्क़ जादू है कौन कहता है जबकि लहज़े में कुछ बदल न हुई।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 बचना बजते गालों से।  झूठों और दलालों से।। हँस कर लुटने जाते हो मज़हब के रखवालों से।। रिश्ते अब क्षणभंगुर हैं बेशक़ हों घरवालों से।। उनको दौलत हासिल है हम जैसे कंगालों  से।। सिर्फ़ नकलची लिखते हैं सावधान नक्कालों से।। पूँछ लगा कौवे भी अब दिखते मोर मरालों से।। ये सचमुच वह दौर नहीं है बचना ज़रा कुचालों से।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 जनवरी सी जब तेरी महफ़िल सजी मैं दिसम्बर की तरह तन्हा रहा।।साहनी
 हर घड़ी बेशक़ नई होती रही। बात बस आयी गयी होती रही।।
 कौन सुनेगा भूली बिसरी कौन सुनाने आएगा। कल ख़ामोश सदायें लेकर कौन मनाने आएगा।। आज मिले हो तो आँखों ही आँखों में कह लो सुन लो कल सूनापन हाल न पूछेगा  न बताने आएगा।। कभी कभी अल सुबह स्वयं से उठने की आदत डालो  हम  न रहेंगे कल तब तुमको कौन जगाने आयेगा।। सुरेश साहनी, कानपुर
 पहले कोई नया ख़याल मिले। तब तो अपनी कलम को चाल मिले।। हुस्न कितना भी बेमिसाल मिले। इश्क़ वाले ही लाज़वाल मिले।। ज़िन्दगी चार दिन रही यारब मौत को फिर भी इतने साल मिले।। सरनिगू  हैं यहाँ  पे हर पैकर कोई तो सिरफिरा सवाल मिले।। मान लेंगे कि उसने याद किया जब कि शीशे में एक बाल मिले।। कैसे मानें मेरे ख़याल में है एक दिन तो वो बेख़याल मिले।। साहनी खाक़ ज़िन्दगी है जो हर क़दम पर न एक जाल मिले।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 उफ़ ये ठण्डी धूप के दिन आदमी को क्या सुकूँ दें रात भी दहकी हुई ठिठुरन समेटे जिंदगी जैसे जलाकर राख करना चाहती है जेब इतनी ढेर सारी हैं पुरानी जैकेटों में पर सभी ठंडी गुफायें क्या हम अपने मुल्क में हैं!!!! कौन है यह लोग जो फिर लग्जरी इन गाड़ियों से होटलों में , रेस्तरां में जश्न जैसी हरकतों से रात में भी पागलों से शोर करते फिर रहे हैं।। सुरेशसाहनी
 जहाँ धूप ने हमें छांव दी वहीं चांदनी में झुलस गए ।। कभी नैन उन से उलझ गए कभी वो निगाह में बस गये।।
 इतनी कसमें इतने वादे ठीक नहीं। इश्क़ में कोई शर्तें लादे ठीक नहीं।। प्यार में तन मन धन सब डूबे चलता है पर जीवन की नाव डूबा दे ठीक नहीं।।