धर्मचर बन ज़िन्दगी के हर चरण को पार करना

ज़िन्दगी से प्यार करना

रूठना मनुहार करना प्रीति करना रार करना

मृत्यु तब स्वीकार करना.....


धर्म हित काया मिली है ज़िन्दगी सहधर्मिणी है

साधना में सहचरी है अनुचरी है रक्षिणी है


प्राण प्रिय तन मन वचन से पूर्ण अंगीकार करना

डूब कर अभिसार करना

मृत्यु तब स्वीकार करना......


जन्म से तो शुद्र है तन, है तरूणता वैश्य  होना

क्षात्र है परिवार पालन धर्म पालन विप्र होना


धर्म का आचार करना धर्म के अनुसार करना

मृत्यु का सत्कार करना

मृत्यु तब स्वीकार करना.........


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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