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Showing posts from March, 2024
 पगडंडी तक तो रहे अपनेपन के भाव। पक्की सड़कों ने किए दूर हृदय से गाँव।। शीतल छाया गाँव मे थी पुरखों के पास। एसी कूलर में मिले हैं जलते एहसास।। टीवी एसी फ्रीज क्लब बंगला मोटरकार। सब साधन आराम के फिर भी वे बीमार।। किचन मॉड्यूलर में नहीं मिलते वे एहसास। कम संसाधन में सही थे जो माँ के पास।। बढ़ जाती थी जिस तरह सहज भूख औ प्यास। फुँकनी चूल्हे के सिवा क्या था माँ के पास ।। सुरेश साहनी, कानपुर
 लिखिए पर कुछ मानी भी हो। पढ़ने में  आसानी  भी  हो।। मक़्ता भी हो मतला भी हो बेहतर ऊला  सानी  भी हो।। शेर बहर से बाहर ना हों उनमें एक रवानी भी हो।। महफ़िल भीड़ न शोर शराबा खलवत हो वीरानी भी हो।। पा लेना ही इश्क़ नहीं है उल्फ़त में क़ुरबानी भी हो।। थोड़ी सी हो ख़्वाबखयाली  और हक़ीक़तख़्वानी  भी हो।। ताब भले हो रुख पर कितना पर आंखों में पानी भी हो।। सुरेश साहनी, कानपुर
 उम्र ने आज़मा लिया मुझको। वक़्त ने भी सता लिया मुझको।। ज़िन्दगी से तो बारहा रूठा दिल ने अक्सर मना लिया मुझको।। मयकदे में गया था मय पीने मयकदे ने ही खा लिया मुझको।। और तुमने भी कब सुना दिल से सिर्फ़ जी भर सुना लिया मुझको।। लाश से अपनी दब रहा था मैं पर कज़ा ने उठा लिया मुझको।। मुझसे शायद ख़फ़ा न था मौला और कैसे बुला लिया मुझको।। हुस्न भटका किया नज़ाकत में साहनी ने तो पा लिया मुझको।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 विप्र धेनु सुर सन्त धरा को सुख अविराम दिया।। उस जननी को नमन जगत को जिस ने राम दिया।। हुए अवतरित जिस आँचल में उसको कोटि नमन धन्य धन्य कौशल्या माई तुमको सतत नमन दिया राम को जन्म नृपति को चारों धाम दिया।। जिस माँ ने ममता के टुकड़े होने नहीं दिए राम काज हित जिसने दो दो बेटे सौंप दिये। पल दो पल हित नहीं अहर्निश आठो याम दिया।। उन्हें नीति से सकल जगत के त्रास मिटाना था कड़ी साधना से सुत को श्रीराम बनाना था यूँही नहीं था नृप ने उनको आसन वाम दिया।।  मातु सरस्वति का आग्रह माँ टाल नहीं पायी जग को लगा हुई रानी से कितनी अधमाई हुई कलंकित स्वयं किन्तु रघुकुल को नाम दिया।। कभी कभी निज सुत को मायें आँख दिखाती हैं डांट डपट  बालक को  सच्ची राह दिखाती हैं इसी ताड़ना को ने   वही किया माँ ने
 पंचवटी में राम बिराजे कमल नयन सुखधाम विराजे आठ प्रहर  चैतन्य निरंतर जहां लखन निष्काम विराजे वीराने आबाद हुए यूं जंगल में ज्यों ग्राम विराजे सोहे सीय संग रघुवर ज्यों साथ कोटि रति काम विराजे सहज लब्ध है चहुं दिसि मंगल  जहां राम का नाम विराजे कण कण तीरथ हुआ प्रतिष्ठित जब तीरथ में धाम बिराजे सुरेश साहनी कानपुर
 सूर सूर हैं चन्दर तुलसी। भान ज्ञान रत्नाकर तुलसी।। राम नाम को ओढ़ लपेटे राम नाम की चादर तुलसी।। रोम रोम तन मन अन्तस् तक भरी नाम की गागर तुलसी।। राम ग्रन्थ अवतार हुआ जब हुलसी माँ सुत पाकर तुलसी।। हुए  राम  घर घर   स्थापित  सदा प्रतिष्ठित घर घर तुलसी।। तुलसी जैसे पूजी जाती पाते  वैसा  आदर तुलसी।। हे कवि कुल सिरमौर गुसाईं कर लो अपना चाकर तुलसी।। सुरेश साहनी, कानपुर
 कामी तुलसी हो गए भगवद भक्त अपार। रत्नावलि विद्योत्तमा का ही थीं अवतार।। रत्नावलि ने कहा था भजो राम का नाम। तब मानस लिख हो गए तुलसी सुख के धाम।। मां रत्नावलि दीजिए मुझ को आशीर्वाद। मातु कृपा से आपकी मिटते सकल प्रमाद।।
 धम्म एहसास को हम भूल गए हैं शायद अपने हर खास को हम भूल गए हैं शायद आज बच्चों को नहीं याद हैं सम्राट अशोक अपने इतिहास को हम भूल गए हैं शायद।। वह सम्राट अशोक हैं मानवता की शान।। जिनके शासन में रहा तिगुना हिंदुस्तान।। दक्षिण में मैसूर तक उत्तर सिंचुवान। पूरब में वर्मा तलक पश्चिम में तेहरान।। एक तिहाई विश्व तक गूंजा जिसका नाम। स्वयं बुद्ध अवतार को सौ सौ बार प्रणाम।। जिनके शासन में रहा कोई रोग न शोक। इसीलिए तो देवप्रिय घोषित हुए अशोक।।
 आपसे बात किस तरह करते। पेश जज़्बात किस तरह करते।। फ़र्ज़ था आपसे पहल होना हम शुरुआत किस तरह करते।। मक़तबे-इश्क़ में नये थे हम ख़त- किताबात किस तरह करते।। दिल अगर आपको कुबूल नहीं हम इनायात किस तरह करते।। कह रहे थे मुझे कहो रहबर दिन में हम रात किस तरह करते।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 बस ये कि चांदनी को अंधेरे नहीं मिले। ऐसा नही कि चाँद को फेरे नहीं मिले।। ऐसा नहीं कि सिर्फ मेरे साथ ये हुआ ख़ुद शम्स को भी कितने सबेरे नहीं मिले।।साहनी
 हुस्न माया है जिस्म फानी है। फिर गृहस्थी का क्या मआनी है।। मौत माना कि सबको आनी है। जीस्त क्या सच में बेमआनी है।। फिर फ़साने किसे सुनाते हो जीस्त के बाद क्या कहानी है।। क्या करेंगे बहिश्त में पीकर हर खुशी जब यहीं मनानी है।। हूर, जन्नत,शराब की नहरें शेख़ कुछ तो ग़लत बयानी है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 रउरे बिना लागे नहीं मनवा हो रामा आवS ना सजनवा। सूना लागे सगरो भवनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। नीक नाही लागे बाबा अंगना दुवरवा लोरवा में रुके नाही पावेला कजरवा कईसे कईसे कटलीं फगुनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। हमरा के छोड़ी सइयाँ भइलें कलकतिया केसे कहीं चढ़ली उमिर के साँसतिया टूटि जाला चोली के बन्धनवा हो रामा आवS ना सजनवा।। रउरे बिना लागे नहीं मनवा हो रामा आवS ना सजनवा। चैती गीत - सुरेश साहनी
 किसने बोला था तुमसे सच बोलो सिर्फ़ ईमानदार कह देते।। क्या ज़रूरी था और कुछ कहना एक बस चौकीदार कह देते।।
 सर्वाधिक खुशहाल है इसमें क्या सन्देह। कहाँ मिलेगा कानपुर जैसा निश्छल नेह।। साहनी
 जग नदिया के इस पार रहो। बेहतर है अपने द्वार रहो।। या अपमानों का विष  पीकर शिव बनने को तैयार रहो।। छुप कर काटेंगे अश्वसेन तुम लाख परीक्षित बने रहो हैं जन्म जन्म के वे अशिष्ट तुम बेशक़ शिक्षित बने रहो या फणिधर भोले बन इनकी क्षण क्षण सुनते फुफकार रहो------ फिर अन्य किसी की महफ़िल में अवमानित हो क्यों रोते हो फिर तिरस्कार या मान मिले विचलित प्रमुदित क्यो होते हो इससे बेहतर है अपने घर  ही रहो भले  बेकार रहो------ साहनी सुरेश कानपुर 9451545132
 अगर सचमुच वतन की फ़िक़्र होती। तो क्या फिर जानो-तन की फ़िक़्र होती।। उसे तर्ज़े कहन की फ़िक़्र होती। अगर उसमें सुखन की फ़िक़्र होती।। अगर हम लाश होते तो हमें भी नए इक पैरहन की फ़िक़्र  होती ।। हमारा पासवां सैयाद ही है उसे वरना चमन की फ़िक़्र होती।। अगर दीवारों-दर पहचानते तो हमें भी अन्जुमन की फ़िक़्र होती।। अगर होता अदूँ में फ़िक़्र का फन यक़ीनन उसको फन की फ़िक़्र होती।। अदब आता तो  बेशक़ साहनी को ज़माने के चलन की फ़िक़्र होती।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 नफरत में इक मिठास को महसूस कर अदीब। इस इश्क का लिबास को महसूस कर अदीब।। जो  तिश्नगी में कैफ़ है सागर में वो कहाँ इस  आशिक़ी की प्यास को महसूस कर अदीब।। जो है तेरे ख़याल में हासिल उसे कहाँ बस कैफ़े-महवे-यास को महसूस कर अदीब।।
 मन से बोला हो या बेमन बोला तो। तल्ख़ी में रख के अपनापन बोला तो।। आख़िर तुमसे रिश्ता एक निकल आया तुमने मुझको अपना दुश्मन बोला तो।। सुरेश साहनी
 आपका साथ जबसे छूटा है। वक़्त  ने  बार बार लूटा है।। ज़ेरोबम हैं हमारी किस्मत के सब ये समझे हैं बेल बूटा  है।। संगदिल बेसबब नही हूँ मैं इम्तहानों ने जम के कूटा है।। यूँ ही मन्नत नहीं हुई पूरी कोई तारा कहीं तो टूटा है।। बाढ़ आई है उस नदी में या आपका इज़तेराब फूटा है।। सुरेश साहनी, कानपुर
 तुम्हें कितने बहाने आ गये हैं। जुबाँ पर सौ फ़साने आ गये हैं ।। के लहजे में बदल से लग रहा है कहानी में फलाने आ गये हैं।। कभी इनसे कभी उनसे मुहब्बत ख़ुदारा क्या ज़माने आ गये हैं।। मुहब्बत क्या इसे इक रस्म कहिये रवादारी निभाने आ गये हैं।। क़यामत हुस्न और क़ातिल अदायें कोई मक़तल में याने आ गये हैं।। सुरेश साहनी
 दिल लगाने के लिए तेरी गली आया था। ज़ख़्म खाने के लिए तेरी गली आया था।। जां लुटाने के लिए तेरी गली आया था। तुझको पाने के लिए तेरी गली आया था।। मैं तो  आया था तेरा हाथ मुझे मिल जाये कब ख़ज़ाने के लिए तेरी गली आया था।। दिल से चाहो तो ख़ुदाई भी मदद करती है ये बताने के लिए  तेरी गली आया था ।। तुझसे मतलब है फ़क़त तेरी रज़ा से निस्बत कब ज़माने के लिए तेरी गली आया था।। तू अगर रूठ भी जाता तो मुनासिब होता मैं मनाने के लिए तेरी गली आया था।। मैं किसी और के कहने में भला क्या आता दिल दीवाने के लिए तेरी गली आया था।। ज़िन्दगी तूने मुझे क्यों दी ग़मों की दौलत ग़म मिटाने के लिए तेरी गली आया था।। साहनी मयकदे जाता तो सम्हल जाता पर डगमगाने के लिए तेरी गली आया था।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 कैसे माने सोए थे तुम या मैं जागा जागा । मैं सपनों में तुम तक जाकर  मिल ना सका अभागा।। समझ न आया इस प्रवंचना  में क्या पाया - खोया कितनी रातों को जागा मैं या कितने दिन सोया
 हुक्मरां कोई रहे क्या फ़र्क है। अपना बेड़ा गर्क था सो गर्क है।। जब रहे गद्दी पे बहरे कान थे आज कैसे सुन रहे हो तर्क है।। माना वो दुश्मन है तुम तो दोस्त थे तुमने भी रेता गला क्या फर्क है।। देखते है हम बदलकर ये निज़ाम जिंदगी तो यूँ भी अपनी नर्क है।। साहनी
 अगियार हमपे तीर कमां तानते रहे। तुम भी मेरी वफ़ा का बुरा मानते रहे।। तन्हा हुए हो आज तो आया मेरा ख़याल वरना कहाँ किसी को तुम पहचानते रहे।।
 चलो उनकी खुशी जी कर तो  देखें। ज़हर ही प्यार से पी कर तो देखें।। बहुत बोले हैं फरियादें भी की हैं तो कुछ दिन होठ भी सी कर तो देखें।।
 हम तुम्हारे साथ  ऐसे  पल बिताना चाहते हैं। सब ज़हाँ की उलझनें हम भूल जाना चाहते हैं।। हमने फुर्सत में कभी तुम पर लिखी थी इक ग़ज़ल तुम इज़ाज़त दो अगर हम वो सुनाना चाहते हैं।।साहनी
 दिल में दर्द समेटे फिरना आहें सर्द सहेजे फिरना मंज़िल मंज़िल दिल का दिल पर मनभर गर्द लपेटे फिरना।।साहनी
 कौन किससे कहे बेवफा कौन है कह रहे हैं सभी पर सफा कौन है आज भी तू ही तू है मेरी ज़ीस्त में पर नज़र में तेरी दूसरा कौन है जिसने तुमसे कहा हम बुरे हैं तो हैं पर पता तो चले वो भला कौन है कौन है हम भी देखें बराबर मेरे यां मुक़ाबिल मेरे आईना कौन है सरबुलन्दी को लेकर परेशान क्यों सब हैं बौने तो कद नापता कौन है पास मेरे मुहब्बत की तलवार है आज मुझसे बड़ा सिरफिरा कौन है।। सुरेशसाहनी
 हा हा हो हो ही ही हू हू इसको प्यार समझता है तू  होते होते ही होता है प्यार नहीं है काला जादू ।।साहनी
 आते जाते तो दिखते हो पर खोये खोये रहते हो अपना मीत बना लो मुझको क्यों खुद से बातें करते हो मरने पर आमादा हो तो कह दो ना हमपे मरते हो नफ़रत की अपनी दुनिया है क्या तुम ऐसी दुनिया से हो।। साहनी
 रात बदली रही चाँद करता भी क्या। मन मचलता रहा और करता भी क्या।। रात ढलती रही वस्ल टलता रहा बस फिसलता रहा वक्त करता भी क्या।। मुन्तज़िर दिल के एहसास को क्या कहें लुत्फ बढ़ता रहा हैफ़ करता भी क्या।। हिज्र की गर्मियां जां जलाती रही ज़िस्म जलता रहा हाय करता भी क्या।। फिर सुबह हो गयी चाँद भी छुप गया यूँ तड़पता रहा इश्क़ करता भी क्या।। साहनी
 मेरी बातें मुझसे कर। उनकी बातें उनसे कर।। ऊगली चुगली ठीक नहीं अच्छी बातें सबसे कर।। सब अल्ला के बन्दे हैं सब से बातें ढब से कर।। दुनिया शायद बहरी हो दिल की बातें रब से कर।। रोना धोना खुद से कर हँस कर बातें सब से कर।। कल तैयारी क्या होगी हर तैयारी अब से कर।। सुरेश साहनी कानपुर
 एतना हाली सुति गईलू। का वादा कईले रहलू।। काहें के रिसियाइल हउ का हम कहलीं का सुनलू।। मन में कौनो बात रहल एक्को हाली बतियवलू।। सात जनम के वादा बा चारे दिन में चल दिहलू।। आज बउरहा बानी हम पहिले कब्बो पतियवलू।। Suresh sahani Adeeb, kanpur
 अक्सर खेती बंटती है धन बंटता है। हर अगली पीढ़ी में आंगन बंटता है।। रिश्तों  नातों में अपनों में गैरों में अनगिनती हिस्सों में जीवन बंटता है।।साहनी
 बेशक हमको ही सब करना चहिए था। मर तो रहे हैं कितना मरना चहिए था।। मौला से , शैतां से रहती दुनिया से  क्या सबसे हमको ही डरना चहिए था।। चढ़ कर आदमजाद क़मर तक जा पहुंचा रब को भी इक रोज उतरना चहिए था।। मालिक तेरी भी कुछ जिम्मेदारी थी क्या ख़ाली इंसान सुधरना चहिए था।। आसमान वाले हम जिसमें जीते हैं इस दोजख से तुझे गुजरना चहिए था।। सुरेश साहनी कानपुर
 होगी आज हयात बड़ी कुछ। करते हैं अब बात बड़ी कुछ ।। आज क़यामत आ सकती है आओ कर दें रात बड़ी कुछ।। बोझिल मन को तेरा दामन इस से नहीं नबात बड़ी कुछ।। हम दोनों आदम हौव्वा हैं है क्या इससे जात बड़ी कुछ।।  चाँद सितारे अफशां गुलशन है ना ये बारात बड़ी कुछ।। नबात/ जड़ी बूटी सुरेश साहनी कानपुर
 इश्क़ को सिलसिला मिले तब तो। हुस्न से भी  रजा   मिले तब तो।। दर्दे-दिल की दवा  मिले तब तो। उस पे उनकी दुआ मिले तब तो।। माँगने से मिली तो क्या मतलब दिल से  दादे-वफ़ा  मिले तब तो।। दिल को तस्लीम है क़यामत भी वो अभी उड़ के आ मिले तब तो।। कैसे माने कि आप दिल मे हैं अपने दिल का पता मिले तब तो।। शेर क्या हम नई ग़ज़ल कह दें पर नया मजमुआ मिले तब तो।। साहनी भी पनाह ले लेगा आपका आसरा मिले तब तो।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 अख़बारों की नज़र कहाँ है। विज्ञापन हैं ख़बर कहाँ है।। कैफ़े बार सजे सड़कों पर पनघट वाली डगर कहाँ है।। कहाँ मुहब्बतगंज गुम हुआ वो अपनों का नगर कहाँ है।। वो अब भी है मेरे दिल में लेकिन उसको ख़बर कहाँ है।। यादें बहुत जुड़ी थी जिससे अब वो बूढ़ा शज़र कहाँ है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 गुनगुनाता ही रहा नगमे वफ़ा के और क्या। दूर जाता ही रहा वो मुस्कुरा के और क्या।। कुर्ब के लम्हे वो सारे वस्ल का हर एक पल याद आता ही रहा वो सब भुला के और क्या।।
 कौन अब इंसान होना चाहता है। आदमी भगवान होना चाहता है।। सब्र की तालीम अपने पास रखिये साबरी सुल्तान होना चाहता है।। आ चुके सब ज़ेरोबम इस ज़िन्दगी के अब सफ़र आसान होना चाहता है।। भक्ति वाले छन्द रसमय हों कहाँ से क्या कोई रसखान होना चाहता है।। हुस्न की नादानियाँ तस्लीम करके इश्क़ भी नादान होना चाहता है।। बेशऊर आने लगे हैं जब से मयकश मयकदा वीरान होना चाहता है।। क्यों फ़क़ीरी ढो रहे हो साहनी जब हर कोई धनवान होना चाहता है।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 वसुधैव कुटुम्बकम।सुनने में कितना अच्छा लगता है।किंतु जब इस सूक्तवाक्य के मानने वाले लोग ब्राम्हण ,क्षत्रिय, वैश्य शुद्र अथवा अन्यान्य जातियों के समागम करते दिखाई पड़ते हैं तो आत्मिक कष्ट भी होता है।यह दायरा यहीं छोटा नहीं होता।जातियों में भी उपजातियों के सम्मेलन आहूत किये जाते हैं। और हर सम्मेलन की एक ही भाव कि उस सम्मेलन में आहूत जाती/उपजाति का अन्य सबल जातियों या सरकारों ने अब तक शोषण किया है । अब सम्बंधित सम्मेलन के आयोजक ही उन्हें उनके अधिकार दिलाएंगे।या अधिकार दिलवाने के संकल्प लेते हैं, आदि आदि।  फिर उनमें से कुछ जाति/उपजाति के नाम पर राजनैतिक दल भी बना कर स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन जाते हैं।   लेकिन संकीर्णता तो संकीर्णता है।इस भाव से ग्रसित व्यक्ति या समाज अपने समाज और परिवार के प्रति भी उदार अथवा व्यापक दृष्टिकोण नही रखता।  अभी कुछ दिन पहले मेरे वृहद परिवार के सदस्य किसी बड़े महानगर में मिले। किसी मित्र से बातचीत के क्रम में मैंने बताया कि वह मेरे अनुज हैं।मेरे चाचा जी के सुपुत्र हैं। पर उन्होंने मेरे व्यापक दृष्टिकोण पर वहीं पानी फेर दिया जब उन्होंने मित्र को बताया कि भैय
 ऐसा लगता है कि आने वाले समय मे सरकार नागरिकों के लिए विभिन्न आर्थिक और सामाजिक स्तर के ब्लॉक या वर्ग बनाने की कोशिश में हैं। आर्थिक असमानताओं की इस अवस्था मे निम्न श्रेणी के नागरिक को लगभग सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिये टैक्स देना आवश्यक होगा और इस व्यवस्था में उसे किसी भी प्रकार की रियायत नहीं मिलेगी।  और अति उच्च आय वर्ग के लोगों को सभी तरह की सब्सिडीज , रियायतें ,ऋण सुविधाएँ और दोहरी तेहरी नागरिकता या मल्टीकन्ट्री सिटिजनशिप भी उपलब्ध रहेंगी। और सबसे बड़ी बात उच्चस्तरीय प्रशासनिक सेवाओं और समितियों में इनको कोलोजियम और लेटरल इंट्री भी मिला करेगी।   यानी बढ़ते आर्थिक असमानता के कारण देश के 90प्रतिशत नागरिक आर्थिक बाड़ों या उन अदृश्य  नाकाबंदी के शिकार होंगे ,जिनमें उसके मौलिक अधिकार नहीं के बराबर रह जाएंगे।  सबसे बड़ी बात ऐसी व्यवस्था किसी मोनार्की से भी खतरनाक हो सकती है।क्योंकि इसमें सबसे पहले टॉर्च बीयरर्स,अव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने वाले , फिर निष्पक्ष पत्रकार फिर विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है। और जब विपक्ष समाप्त हो जाये तो इकनोमिक ब्लॉक के नियम सख्ती से लागू किये जाते हैं। आप
 मयकशी में हिसाब क्या रखते। क्या बचाते शराब क्या रखते।। हुस्न ही बेनकाब आया था हम भी आशिक थे ताब क्या रखते।। क्या शबे-वस्ल रोज आती है तिशनालब इज़्तराब क्या रखते।। हम तो ख़ुद चैन से न सो पाये उनकी पलकों पे ख़्वाब क्या रखते।। गुल नहीं है कोइ भी उस जैसा नाम उस का गुलाब क्या रखते।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 कैसी प्रीत निभाई तुमने। हर सूं की रुसवाई तुमने।। मनमन्दिर की पावनता को कितनी ठेस लगाई तुमने।। दिल के सनमकदे में गोया महफ़िल तक लगवाई तुमने।। राधे तुम ही रोक न् पाए कुछ तो करी ढिलाई तुमने।। ख्वाबों में जमुना तट आकर ब्रज की याद दिलाई तुमने।। अपना ही मंदिर तोड़ा है धोखे में हरजाई तुमने।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 बहारो-कैफ़ के लश्कर ही ले गया कोई। गया तो जैसे मुक़द्दर ही ले  गया कोई।। कुबूल था कि रतन भर के ले गया होता ये क्या कि साथ समुन्दर ही ले गया कोई।।
 मैं भी  क़िरदार था कहानी में। वो मेरा प्यार था कहानी में।। उसने दिल मे उसे जगह दे दी क्या वो  हक़दार था कहानी में।। सिर्फ़ सच बोलने की आदत से मैं गुनहगार था कहानी में।। छोड़ना साथ यकबयक उसका इक वही यार था कहानी में।। वो मिलेगा कभी तो पूछूँगा क्या ये दरकार था कहानी में।। उसने मुझको ही कर दिया खारिज़ क्या मैं दीवार था कहानी में।। साहनी फिर कहाँ उबर पाया ग़म का अम्बार था कहानी में।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 अपने मेयार से हम उतरते गये ख़ुद निगाहों में अपनी ही गिरते गये क्या हुआ इश्क़ में क्या बतायें तुम्हें हम उजड़ते गये वो संवरते गये।।साहनी
 टिकुली सेनुर माथ रहा बस। उन हाथों में हाथ रहा बस सब अपने थे फिर क्यों जीवन् जैसे सदा अनाथ रहा बस।। रेल पटरियों  जैसा अपना जीवन भर का साथ रहा बस।। उस अपने मन के मालिक का कभी कभी मैं नाथ रहा बस।। बिना मोल क्या बिका साहनी दो दिन हाथोंहाथ रहा बस।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 सब बोले आराम बहुत है भैया बोले काम बहुत है दुनिया भर की टेंशन झेलो वैसे पद का नाम बहुत है।।साहनी
 अमां तुम किसको ताना दे रहे हो। किसे जाकर उलहना दे रहे हो।। गदा को आस्ताना दे रहे हो। फकीरों को ठिकाना दे रहे हो।। कोई औक़ाफ़ है मेरी कमाई जताते हो ख़ज़ाना दे रहे हो।। अमां सरकार तुम मालिक नहीं हो कि अपने घर से खाना दे रहे हो।।  न बोलो तुम चलाते हो ख़ुदाई किसे तुम आबोदाना दे रहे हो।। ख़ुदा  भी क्यों रहे बूढ़े हृदय में अब उसको घर पुराना दे रहे हो।। ख़ुदा बेघर कहाँ है साहनी जी ये किसको आशियाना दे रहे हो।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 अनियंत्रित ना हो कहीं होली का उल्लास। दाम गैस के इसलिये केवल बढ़े पचास।।साहनी
 काफ़िया है रदीफ़ भी है क्या । उनका तर्ज़े- लतीफ भी है क्या ।। हमने माना शरीफ है लेकिन यार इतना शरीफ भी है क्या ।। प्यार से प्यार भी न कर पाए कोई इतना ज़ईफ़ भी है क्या ।। अपने अवक़ाफ़ मे बड़ी ये है इनमें कोई अलीफ भी है क्या।।
 साला बिना ससुराल कहाँ और  साली बिना न हँसी न ठिठोली साली की मीठी सी बोली के आगे  घरैतिन लागे है नीम निम्बोली साला बिना पकवान सुहाये ना साली बगैर सुहाए न होली आई गए ससुराल के लोग तो सोहे कहाँ होरियारों की टोली।। जैसे  छछूंदर  आवत जाति है  तैसे ही वे  छुछुवाय  रहे हैं टेसू गुलाल अबीर  जुटाने को सांझ से ही अकुलाय रहे हैं होली पे साली के आने की बात से फुले नहीं वे समाय रहे हैं सर की सफेदी छुपाने के लाने वो डाई खिजाब लगाय रहे हैं।। लागत है अस पूरी की पूरी अमराई बऊराय गयी है। महुवारी मह मह महके है फुलवारी भी फुलाय गयी है।। हम घर में हैं बाहर होरी में पूज के आग धराय गयी है कैसे बचें हम उनकी सहेली आय के रंग लगाय गयी है।। होली कहाँ जो न् खाये लठा  ब्रजनारी सों और भिजाये न चोली कान्हा के रंग रँगी चुनरी अब दूसरो रंग अनंग न डारो निर्गुण ज्ञान की चाह नहीं गुणग्राही पे निर्गुण रंग न डारो रति काम विदेह  हुए जिससे उस रास में काम प्रसंग न डारो प्रेम के रंग में अंग रँग्यो है छेड़ के रंग में भंग न डारो।। सुरेश साहनी, कानपुर
 मेरा किरदार मुझसे डर रहा है। कोई मुझमें अज़ीयत भर रहा है।। मेरे साये मेरे कद से बड़े हैं कोई माज़ी से रोशन कर रहा है।। मेरी यादों यहाँ से लौट जाओ कहाँ तक काफिला रहबर रहा है।। बुलाती हैं हमें भी कहकशांएँ मेरा परवाज़ हरदम सर रहा है।। मेरे हाथों में मरहम है ,शिफ़ा भी तुम्हारे हाथ मे नश्तर रहा है।। ज़फा के पल फ़क़त दो चार होंगे मुहब्बत से सबब अक्सर रहा है।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 उससे ख्वाबों में ख़ाक़ मिल पाते उम्र भर नींद ही नहीं आयी।।साहनी
 अमरीका के नाम पर प्राइवेट विनिवेश। जनता को है भोगना धन तो गया विदेश।। जिनको होना चाहिये किसी तरह भी जेल। उनकी रक्षा के लिए नव निवेश का खेल।।
 रोते रोते गा ही लेंगे। कुछ तो दर्द छुपा ही लेंगे।। तुम होते तो मुश्किल होती ख़ुद को दर्द सुना ही लेंगे।। दो दिन तुम बिन ही बीते हैं दो दिन और बिता ही लेंगे।। दुनिया वालों को तुम समझो दिल को हम समझा ही लेंगे।। हम सुरेश को ढूंढ रहे हैं तुमको तो हम पा ही लेंगे।।
 हमारे प्यार की पहली घड़ी को याद करना। मेरी चाहत मेरी दीवानगी को याद करना।। कहीं रहना मेरी इतनी दुआ है कभी ये ना समझना दूरियां हैं अकेलापन तुम्हे होने न पाये तुम्हारे साथ मेरी दास्ताँ है कभी तुमको लगे मैं ही गलत था तुम सही हो तो निज आँखों से बहती पावनी को याद करना।। तुम्हे चाहा चलो मेरी खता थी मेरी तकदीर ही मुझसे खफ़ा थी तुम्ही बढ़ कर के हमको थाम लेते तुम्हारे पांव में कब बेड़ियाँ थी कभी राहों में जब तुम धूप से होना परेशां हमारे प्यार की मधुयामिनी को याद करना।। कहाँ जाओगे इस दिल से निकलकर हमारा साथ हैं क्या इस जनम भर कहीं भी यदि तुम्हे ठोकर लगे तो बढ़ कर थाम लेंगे हम वहीं पर भटकना मत न घबराना कभी मंजिल से पहले किसी भी मोड़ पर अनुगामिनी को याद करना।। जहाँ राधा वहीँ पर श्याम होंगे जहाँ सीता मिलेंगी राम होंगे अगर आगाज़ दिल से हो गया है यकीनन खुशनुमा अंजाम होंगे जो फूटी थी कभी समवेत स्वर में रासवन में वो बन्शी और उसकी रागिनी को याद करना।। सुरेश साहनी,कानपुर
 तुम सखी बनकर मिलो तो तुम सहज होकर मिलो तो हर अहम प्रिय दूर रख कर स्वत्व को खोकर मिलो तो...... चार दिन की ज़िंदगी मे हमने अवगुण्ठन न खोले चाह कर मैं कह न् पाया संकुचनवश तुम न बोले द्वार मनमंदिर के खोलो बन के सुख आगर मिलो तो..... क्या है राधा कृष्ण क्या है रास क्या है जानती हो प्रेम क्या है योग क्या है सच कहो पहचानती हो तुम मिलो तो गांव का  ग्वाला बने नागर मिलो तो...... उम्र के इस मोड़ पर भी तुम नदी के उस किनारे आज मौका है बुलाते  प्रेम की गंगा के धारे फागुनी संदर्भ लेकर आज इस तट पर मिलो तो........ सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
 ऋग्वेद में दो पक्षियों की कथा है। सुपर्ण पक्षी। दोनों एक ही डाल पर बैठे हैं। एक अमृत फल खाता है। दूसरा उसे फल खाते देखता है और प्रसन्न होता है। उसे लगता है कि वह ख़ुद फल खा रहा है। जितनी तृप्ति पहले पक्षी को फल खाने से मिल रही है, उतनी ही तृप्ति दूसरे को उसे फल खाते देखने से मिल रही है। दोनों के पास ही खाने की तृप्ति है। खाने पर भी खाने की तृप्ति और देखने पर भी खाने की तृप्ति। इसे ‘द्वा सुपर्णा सयुजा सखायौ’ कहा गया है। साभार-गीत चतुर्वेदी