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सिर्फ़ सच बोलने से डरता हूँ।।

ये करिश्मा मैं खूब करता हूँ। रोज जीता हूँ रोज मरता हूँ।। यूँ तो मुझको कोई भी खौफ नहीं सिर्फ़ सच बोलने से डरता हूँ।। मेरी पहचान ये नहीं फिर भी क्यों इसे ओढ़ता पहनता हूँ।। मेरा कातिल है कोई गैर नहीं खूबियां उसकी मैं समझता हूँ।। मेरी दुनिया मेरा दिमाग औ दिल और इसमें भी मैं भटकता हूँ।। मैं कहीं भी सहज नहीं होता मैं मुझे ही बहुत अखरता हूँ।। जागने पर उजाड़ सा क्यों हूँ रोज मैं नींद में सँवरता हूँ।। कोई मेरा पता बता दे मुझे मैं गली दर गली गुजरता हूँ।।
लौटकर आता हूँ घर हारे जुवारी की तरह। जब किसी के पास जाता हूँ भिखारी की तरह।। मैं सियासत के किसी भी कोण से लायक नहीं इस्तेमाल होता हूँ मैं हरदम अनारी की तरह।। मैं कबूतर हूँ कोई दुनिया के इस बाजार में लोग दिखते देखते हैं ज्यूँ शिकारी की तरह।। चलती फिरती पुतलियाँ हैं हम उसी के हाथ की जो नचाता है सदा सबको मदारी की तरह।।
मुझे मंदिर मुझे मस्जिद मुझे गिरजा न जाने दो। जहाँ इंसान बसते हों ,वहीँ पर घर बनाने दो।। समझते हों जहाँ पर लोग केवल प्रेम की भाषा वहीँ पर मौन रहकर गुनगुनाने मुस्कुराने दो।। न उसको रोकना बेहतर न उसको टोकना अच्छा अगर आता है आने दो नहीं आता है जाने दो।। हमारी उम्र आधी कट चुकी है तुमको मालूम है न सोचो अब तो बंधन वर्जनाएं टूट जाने दो।। मुझे झूठी तसल्ली दी सभी ने ये ही कह कह कर तुम्हारा है तो आएगा वो जाता है तो जाने दो।।
मेरे दिल से भला क्या वास्ता है। तुम्हारा शौक है मुझको पता है।। खिलौने और हैं तुम खूब खेलो भला दिल से भी कोई खेलता है।। वो पत्थर है उसे इतना न चाहो सभी समझेंगे शायद देवता है।। जिसे तुम सोचते हो सो रहा है वो चिंतन कर रहा है जागता है।। उसे दो साल का बच्चा न समझो वो अब अच्छा बुरा पहचानता है।।
मुझे कुछ और जी लेने तो देते। निगाहें भर के पी लेने तो देते।। कभी कुछ भी नहीं उनसे मिला है इज़ाज़त ही सही लेने तो देते।। मेरी मैयत में कितने लोग आये जरा सी हाज़िरी लेने तो देते।। वो मेरी जान लेना चाहता था जरा सी चीज थी लेने तो देते।। तुम्हारे दर्द लेकर और जीता मुझे इतनी ख़ुशी लेने तो देते।। तेरे कदमों में जन्नत थी हमारी तुम उसकी खाक ही लेने तो देते।।
सभी सही रहे मैं ही गलत रहा शायद। तभी तो हर सजा मैं ही भुगत रहा शायद।। उन्हें पता था कि मैं बेगुनाह हूँ फिर भी न बोलने की वजह मौनव्रत रहा शायद।।
मत कहो! पगला गया है। वो अपनों से छला गया है।। क्यों करते हो उसकी बातें जो महफ़िल से चला गया है।। आम आदमी की बातो से राजा क्यों तिलमिला गया है।। वो क्या जाने दुनियादारी उसे कोई बरगला गया है ।। तू है अकबर मैं क्या जानूँ कहाँ तक सिलसिला गया है।। खुशफहमी थी जिसकोलेकर वो ही मुझको रुला गया है।। जिसको चारागर समझा था जहर वही तो पिला गया है।। जिससे घर को उम्मीदें थीं बुनियादेँ तक हिला गया है।।
लो जिंदगी का और एक साल कम हुआ। कैसे कहूँ कि मुझपे सितम या करम हुआ।। दुनिया में जितने लोग हुए सब नहीं रहे उन सब को अपने रहने का कितना भरम हुआ।। आया गया का खेल कोई खेलता है और ना जाने कब वो कहदे तमाशा ख़तम हुआ।। हर सुबह जन्मता हूँ मैं हर शाम मृत्यु है कैसे कहूँ कि आज हमारा ‪#‎जनम‬ हुआ।।
अधूरी जिंदगी की ख्वाहिशे हैं। हर एक सूं गर्दिशे ही गर्दिशें हैं।। यहाँ मिटटी का एक मेरा ही घर है मेरे घर के ही ऊपर बारिशें हैं।। मेरा हासिल न देखो मुख़्तसर है ये देखो क्या हमारी कोशिशें हैं।। इसे कह लो मेरी दीवानगी है हम अपने कातिलों में जा बसे हैं। मेरी मंजिल मगर आसां नहीं हैं यहाँ तो हर कदम पर साजिशें हैं।। मुहब्बत से बड़ा मजहब नहीं है तो क्यों दुनियां में इतनी रंजिशें हैं।।
मसअला   यूँ   तो   कोई   खास   न   था। हाँ   कभी   इस   कदर   उदास   न   था।। उसका   होना   न   होना   ही   होता वो   तो   पहले   भी   मेरे   पास   न   था।। यूँ   न   आया   मेरे   जनाजे   में पास   उसके   नया   लिबास   न   था।। मेरे   मरने   पे   खैर   क्या   रोता उसका   चेहरा   भी   गमशनास   न   था।। उसने   पुछा   तो   था   मगर   ऐसे ज़ाम   तो   था   फ़क़त   गिलास   न   था।। बीच   धारा   मे   मुझको   छोड़   गया यूँ   भी   होगा   मुझे   कयास   न   था।। उसने   शायर   बना   दिया   मुझको मैं   अदीबॉ   के   आस   पास   न   था।। उसने   तब   खुद   को   बेहिजाब   किया जब   मुझे   होश - ओ - हवास   न   था।।
तुम्हें   आराम   में   जीने   की   लत   है। मुझे   आराम   से   जीने   की   लत   है।। मेरी   कीमत   रूपये   में   आंकते   हो तुम्हारा   आंकलन   कितना   गलत   है।। पराये   दर्द   को   अपना   समझना यही   सबसे   बड़ी   इंसानियत   है।। अगर   माँ   बाप   जिन्दा   हैं   तो   समझो घटाओं   में   तुम्हारे   सर   पे   छत   है।। मुझे   लगता   नहीं   फ़ानी   है   दुनिया कि   ये   आदम   से   अबतक   अनवरत   है।। ...
तुम   क्या   जानो   कोई   कुनबा   कैसे   बनता   है। तुम   को   क्या   लगता   है   कोई   खेल   तमाशा   है।। कहने   को   तो   जीभ   चलाओ   कुछ   भी   बक   डालो भानमती   के   दिल   से   पूछो   क्या   क्या   होता   है।। जिसको   तुम   बेदर्दी   से   स्वाहा   कर   देते   हो उतना   घर   बनने   में   एक   ज़माना   लगता   है।। ये   बहरी   सरकारें   कब   जनता   की   सुनती   हैं गांव   गली   से   संसद   तक   चिल्लाना   पड़ता   है।। संसद   में   जब   प्रश्न   उछलकर   चुप   हो   जाते   है तब   सड़कों   पर   आने   पर   ही   उत्तर   मिलता   है।।
वो   रास्ते   जिनसे   सटे   ऊँचे   मकान   हैं। वीरानियाँ   लिए   हैं   बहुत   सूनसान   हैं।। पूजा   नमाज   में   कोई   पंडित   या   मौलवी किस   वास्ते   दोनों   हमारे   दरमियान   हैं।। आदम   का   दीन   क्या   था   बताये   कोई   हमें फ़िलहाल   कोई   हिन्दू   कोई   मुसलमान   है।। गांधी   की   जगह   गोडसे   को   पूज   रहें   हैं कैसे   यकीं   करें   कि   ये   हिन्दोस्तान   है।। नफरत   यहाँ   का   सबसे   बड़ा   कारोबार   है मजहब   यहाँ   की   सबसे   पुरानी   दुकान   है।। कतरा   कभी   रहा   नहीं   कहते   हैं   सब  " अदीब ' गोया   सभी   समन्दरों   के   वारिसान   है।।