मसअला यूँ तो कोई खास  था।
हाँ कभी इस कदर उदास  था।।
उसका होना  होना ही होता
वो तो पहले भी मेरे पास  था।।
यूँ  आया मेरे जनाजे में
पास उसके नया लिबास  था।।
मेरे मरने पे खैर क्या रोता
उसका चेहरा भी गमशनास  था।।
उसने पुछा तो था मगर ऐसे
ज़ाम तो था फ़क़त गिलास  था।।
बीच धारा मे मुझको छोड़ गया
यूँ भी होगा मुझे कयास  था।।
उसने शायर बना दिया मुझको
मैं अदीबॉ के आस पास  था।।
उसने तब खुद को बेहिजाब किया
जब मुझे होश--हवास  था।।

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