लौटकर आता हूँ घर हारे जुवारी की तरह।
जब किसी के पास जाता हूँ भिखारी की तरह।।
जब किसी के पास जाता हूँ भिखारी की तरह।।
मैं सियासत के किसी भी कोण से लायक नहीं
इस्तेमाल होता हूँ मैं हरदम अनारी की तरह।।
इस्तेमाल होता हूँ मैं हरदम अनारी की तरह।।
मैं कबूतर हूँ कोई दुनिया के इस बाजार में
लोग दिखते देखते हैं ज्यूँ शिकारी की तरह।।
लोग दिखते देखते हैं ज्यूँ शिकारी की तरह।।
चलती फिरती पुतलियाँ हैं हम उसी के हाथ की
जो नचाता है सदा सबको मदारी की तरह।।
जो नचाता है सदा सबको मदारी की तरह।।
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