मैं मुसलसल सफर में रहा।
ताउमर रहगुजर में रहा।।
प्यार में जिसने धोखा दिया
मैं उसी के असर में रहा।।
वो नजर से गिराता रहा
जो हमारी नजर में रहा।।
जो मजा मेरी वहशत में है
वो मजा कब पिशर में रहा।।
अपनी उम्मत सुकुं से रहे
इसलिए मैं हिजर में रहा।।
खुद से कितना मैं था बेखबर
उम्रभर मैं खबर में रहा।।
हैफ उसने नजर फेर ली
जो हमारे जिगर में रहा।।
आज वो मोहतरिम हो गया
जो इधर का उधर में रहा।।
वो ही बेघर मुझे कर गया
जो हमारे ही घर में रहा।।
हुश्न को बुतकदा चाहिए
इश्क़ तो खंडहर में रहा।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है