नाचीज़ की एक और गुस्ताखी समाअत फरमाएं।
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तुम्हें आराम में जीने की लत है।
मुझे आराम से जीने की लत है।।
मेरी कीमत रूपये में आंकते हो
तुम्हारा आंकलन कितना गलत है।।
पराये दर्द को अपना समझना
यही सबसे बड़ी इंसानियत है।।
अगर माँ बाप जिन्दा हैं तो समझो
घटाओं में तुम्हारे सर पे छत है।।
मुझे लगता नहीं फ़ानी है दुनिया
कि ये आदम से अबतक अनवरत है।।
जवानी में रहे मदहोश क्योंकर
जईफी में जो फ़िक्रे-आख़िरत है।।
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तुम्हें आराम में जीने की लत है।
मुझे आराम से जीने की लत है।।
मेरी कीमत रूपये में आंकते हो
तुम्हारा आंकलन कितना गलत है।।
पराये दर्द को अपना समझना
यही सबसे बड़ी इंसानियत है।।
अगर माँ बाप जिन्दा हैं तो समझो
घटाओं में तुम्हारे सर पे छत है।।
मुझे लगता नहीं फ़ानी है दुनिया
कि ये आदम से अबतक अनवरत है।।
जवानी में रहे मदहोश क्योंकर
जईफी में जो फ़िक्रे-आख़िरत है।।
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