लो जिंदगी का और एक साल कम हुआ।
कैसे कहूँ कि मुझपे सितम या करम हुआ।।
दुनिया में जितने लोग हुए सब नहीं रहे
उन सब को अपने रहने का कितना भरम हुआ।।
आया गया का खेल कोई खेलता है और
ना जाने कब वो कहदे तमाशा ख़तम हुआ।।
हर सुबह जन्मता हूँ मैं हर शाम मृत्यु है
कैसे कहूँ कि आज हमारा ‪#‎जनम‬ हुआ।।

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