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बेहतर होता

नहीं किया जो कर जाना ही बेहतर होता। सच दुनिया का डर जाना ही बेहतर होता।। इन कोरोनाई  रिश्तों  के संग जीने से तम हर कर नभ पर जाना ही बेहतर होता।।...... प्रेम कहाँ अब स्वार्थ कहो ज्यादा बेहतर है भ्रम ही आज यथार्थ कहो ज्यादा बेहतर है अपनी ख़ातिर जिओ और सुख से मर जाओ और इसे परमार्थ कहो ज्यादा बेहतर है जब तक जीये जो जो शौक अधूरे छूटे उनका पूरा कर जाना ही बेहतर होता।।....... बने बुलबुले सम्बन्धों के फुट गए फिर चलो प्रेम के तार जुड़े क्यों टूट गए फिर निश्चित ही सबने केवल अपने हित देखे हित साधा तो सधे नही सधा रूठ गए फिर जितने मोती उतने मनके एक सूत्र की माला सहज बिखर जाना ही बेहतर होता।।....... सम्बन्धों का मकड़जाल या ताना बाना है जाना पहचाना या जाना अनजाना पैर इसी ने बांध लिए हैं सहज प्रेम से कभी प्रेम था सहज मुक्ति का राग सुहाना तृप्ति नहीं तो मुक्ति नहीं मिलती है तब तो राग भोग में रम जाना ही बेहतर होता।।.... सुरेश साहनी, कानपुर