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 कैसे माने सोए थे तुम या मैं जागा जागा । मैं सपनों में तुम तक जाकर  मिल ना सका अभागा।। समझ न आया इस प्रवंचना  में क्या पाया - खोया कितनी रातों को जागा मैं या कितने दिन सोया
 हुक्मरां कोई रहे क्या फ़र्क है। अपना बेड़ा गर्क था सो गर्क है।। जब रहे गद्दी पे बहरे कान थे आज कैसे सुन रहे हो तर्क है।। माना वो दुश्मन है तुम तो दोस्त थे तुमने भी रेता गला क्या फर्क है।। देखते है हम बदलकर ये निज़ाम जिंदगी तो यूँ भी अपनी नर्क है।। साहनी
 अगियार हमपे तीर कमां तानते रहे। तुम भी मेरी वफ़ा का बुरा मानते रहे।। तन्हा हुए हो आज तो आया मेरा ख़याल वरना कहाँ किसी को तुम पहचानते रहे।।
 चलो उनकी खुशी जी कर तो  देखें। ज़हर ही प्यार से पी कर तो देखें।। बहुत बोले हैं फरियादें भी की हैं तो कुछ दिन होठ भी सी कर तो देखें।।
 हम तुम्हारे साथ  ऐसे  पल बिताना चाहते हैं। सब ज़हाँ की उलझनें हम भूल जाना चाहते हैं।। हमने फुर्सत में कभी तुम पर लिखी थी इक ग़ज़ल तुम इज़ाज़त दो अगर हम वो सुनाना चाहते हैं।।साहनी
 दिल में दर्द समेटे फिरना आहें सर्द सहेजे फिरना मंज़िल मंज़िल दिल का दिल पर मनभर गर्द लपेटे फिरना।।साहनी
 कौन किससे कहे बेवफा कौन है कह रहे हैं सभी पर सफा कौन है आज भी तू ही तू है मेरी ज़ीस्त में पर नज़र में तेरी दूसरा कौन है जिसने तुमसे कहा हम बुरे हैं तो हैं पर पता तो चले वो भला कौन है कौन है हम भी देखें बराबर मेरे यां मुक़ाबिल मेरे आईना कौन है सरबुलन्दी को लेकर परेशान क्यों सब हैं बौने तो कद नापता कौन है पास मेरे मुहब्बत की तलवार है आज मुझसे बड़ा सिरफिरा कौन है।। सुरेशसाहनी