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 काहे की इंसानियत काहे का कानून। बुलडोजर से हो रहा लोकतंत्र का खून।। लोकतन्त्र का खून खेलते सत्ताधारी। मजहब मजहब खेल रहे हैं अत्याचारी।। पक्षपात से रहित अतिक्रमण को सब ढाहे ऐसा  हो यदि न्याय मनुजता रोये काहे।।
 एक तो कविताई का रोग ऊपर से चार मित्रों की वाह वाह । पूरी तरह बिगड़ने के लिए इतना बहुत है। जहीर देहलवी कहते हैं कि - ",कुछ तो होते हैं मुहब्बत में जुनू के आसार और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं।।" मैं संकोच में पड़ जाता हूं जब कुछ युवा कवि मुझे अपना प्रेरणा स्रोत कहने लगते हैं।ऐसे में मुझे लगता है कि उन सभी कवि मित्रों को अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जाए। और यह उचित भी है क्योंकि मैं काव्यकला से कत्तई अनभिज्ञ हूं। यमाताराजभानसलगा और रुकनोबहर के लगभग सभी नियम कायदों से अपरिचित।मुझे लगता है कि मेरे सभी युवा मित्रों को अपने अपने शहर/तहसील के उन वरिष्ठ कवियों का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए जिन्हें प्राचीन और अर्वाचीन काव्य साहित्य की समझ हो अथवा जो कविता के व्याकरण से भली भांति परिचित हों।  ये और बात कि आजकल स्वनामधन्य गुरुओं की बाढ़ सी आयी हुई है। एक दिन शहर की एक प्रतिष्ठित गोष्ठी में  एक सज्जन मिलें। वरिष्ठता के नाते मैंने उन्हें प्रणाम भी किया। वैसे मैं सभी को यथोचित सम्मान देता हूँ। और अपनी कोशिश भर पहले अभिवादन करता हूँ।   तो मैंने जैसे ही उन्हें प्रणाम किया उन्होंने कह
 वफ़ा की राह वाले ही मिले हैं। हमें परवाह वाले ही मिले हैं।। जहां मिट्टी खंगाली है बशर ने वहाँ अल्लाह वाले ही मिले हैं।। कहाँ मिलते हैं सच्चे दीन वाले हमें तनख्वाह वाले ही मिले हैं।। ये दो अक्षर बचाने को ग़मों से सहारे काह वाले ही मिले हैं।। कहाँ मिलते हैं अब वो पीरो- मुर्शिद फ़क़त दरगाह वाले ही मिले हैं।। ख़ुदा वाले कहाँ दरवेश हैं अब गदाई शाह वाले ही मिले हैं।। यही हासिल है अपने साहनी का सफ़र जाँकाह वाले ही मिले हैं।। काह- तिनका दरवेश- संत ,फकीर गदाई-  फकीर जाँकाह- जानलेवा , भयावह सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
 वो पीपल का पेड़ देखे हैं? मझौली चौराहे पर जिसकी छाँव तले जानवर और आदमी कोई भी आता जाता यात्री, थके हारे मज़दूर और किसान पनघट से लौटती पनिहारिने और गाँव के बच्चे भी आराम कर लेते हैं और तो और  उसी की छाँव में मैंने देखा है जुम्मन चाचा को नमाज़ पढ़ते हुए जिस की जड़ों में रखे शिव बाबा पर राम लग्गन पंडित जी  नित्य जल चढ़ा कर  परिक्रमा करते मिलते हैं। मैंने देखा है रग्घू चमार  वहीँ सुहताता है और जब राम अचरज बाबा बताते हैं क्षिति जल पावक गगन समीरा पांच तत्व मिलि रचत शरीरा।। तब वह बड़े भाव से   बरम बाबा को हाथ जोड़ कर परनाम करता है। वैसे तो किसिम किसिम की चिरई उप्पर बैठती हैं घोंसला बनायी हैं लेकिन उ कौवा बड़ा बदमाश है बाबा पर छिड़क दिया था रग्घू डरते डरते पोछे थे।
 वो किसी और के ख़याल में था ये मुलाक़ात  वस्ल  तो ना हुई ।।
 यार इस इश्क़ में मिला क्या है। ये कहो जेब मे बचा क्या है।। रात थाने में जम के टूट गई इश्क़ तशरीफ़ के सिवा क्या है।। तुम तो कहते हो कोई बात नहीं कुछ नहीं है तो फिर गिला क्या है।। उसने खाना ख़राब करके कहा मोहतरम खाने में बना क्या है।। हम हैं ख़ामोश कुछ न होने से हर तरफ शोर है हुआ क्या है।।
 ख़ुदा भी डरता है  इंसान की इस खूबी से  वो जिसे चाह ले  भगवान बना देता है।।सुरेश साहनी