जब कभी भी यक़ीन पर लिखना।

कुछ न कुछ आस्तीन पर लिखना।।

आज धोखा फरेब मज़हब है

क्या किसी और दीन पर लिखना।।

आसमां के ख़ुदा से क्या मतलब

तुम जो लिखना ज़मीन पर लिखना।।

जो भी आता है भूल जाओगे

छोड़ दो उस हसीन पर लिखना।।

खुर्दबीनों ने ज़िन्दगी दी है

व्यर्थ था दूरबीन पर लिखना।।

जब कलम थामना तो याद रहे

क़ाफ़ लिखना तो सीन पर लिखना।।

साँप से भी गिरा मैं समझूंगा

तुम ने चाहा जो बीन पर लिखना।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है