तोड़ हीरामन अगर तन पींजरा है।
जो बचा है वह तो केवल मकबरा है।।
हारना है हार ले इक कक्ष अपना
तोल पंखों को फुला ले वक्ष अपना
देख इस आकाश का क्या दायरा है।।
मोह या संकोच में मत पड़ निकल ले
चीथड़ों को मुक्ति दे काया बदल ले
ब्रम्ह का बाज़ार कपड़ों से भरा है।।
है विविध मल मूत्र का आगार यह तन
मुग्ध होकर भूल मत हरि से समर्पण
और इस जर्जर भवन में क्या धरा है।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
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