इतना वाइज हमें डराता है।

क्या तू दोज़ख़ से होके आता है।।

हर कुदूरत में वो नुमाया है

तू किसे लापता बताता है।

एक खाना ख़राब को कैसे

तू पनाहे-ज़हाँ बताता है।।

बेख़ुदी का मिजाज़ क्या जाने

तू न पीता है ना पिलाता है।।

इक ज़रा मयकदे में आ के देख

और ज़न्नत किसे बताता है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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