आज और कल कन्याओं का पूजन होगा। छोटी छोटी बच्चियों को जिनमें कुछ समर्थ भी होंगी, हम उन्हें हलवा पूरी दही जलेबी खिलाकर उन के पैर धोकर  कन्या पूजन की इतिश्री कर लेंगे। इसके पश्चात वर्ष भर उन कन्याओं में उभरते विकास को देख देख कर उन की स्वच्छन्दताओं पर प्रतिबंध लगाते फिरेंगे। बहुत से लोग उन कन्याओं में उभरती नारी शक्ति के स्थान पर एक पुष्ट होती युवती देख देख अन्य प्रकार की संभावनाएं तलाशते फिरेंगे। 

 यह वहीं समाज है जहां  "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"-. जहाँ नारी की पूजा होती है,वहाँ देवताओं का निवास होता है।, का उद्घोष बड़े जोर शोर से किया जाता है किंतु आचरण विपरीत रखा जाता है।

क्या हम कुछ आर्थिक रूप से कमजोर कन्याओं के वर्ष पर्यंत शिक्षा और पालन पोषण की जिम्मेदारी लेते हैं? क्या हम उन बच्चियों के पढ़ने लिखने ,खेलने कूदने और यत्र तत्र विचरण के अनुकूल वातावरण बनाने में पहल करते हैं?क्या हम अपने बच्चों को कन्या सम्मान की नैतिक शिक्षा देते हैं?

 शायद नहीं।और यदि नहीं तो कन्या पूजन की औपचारिकता बेमानी है।


या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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