लोकतंत्र की नींव पर जब जब हुए प्रहार।

पत्रकार जन ही हुए सबसे अधिक शिकार।।साहनी


जो भी चारण भाट सम करते हैं व्यवहार।

पत्रकार बेशक़ बनें पर हैं पत्तलकार।।साहनी

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