हुस्न ने फिर भी एक घर पाया।
इश्क़ लेकिन कहाँ उबर पाया।।
उस को दिल ने जिधर जिधर देखा
दिल को मैंने उधर उधर पाया।।
ज़ुल्फ़ बिखरी सँवर ही जाती है
दिल उजड़ कर न फिर सँवर पाया।।
उस ख़ुदा की तलाश आसां थी
क्या मैं ख़ुद को तलाश कर पाया।।
सब तो हैं कब्रगाह गांवों की
आपने क्या कोई शहर पाया।।
कर्ज़ हैं वालिदैन के मुझ पर
मैं जिन्हें आजतक न भर पाया।।
साहनी किस मलाल के चलते
चैन से जी सका न मर पाया।।
साहनी सुरेश कानपुर
9451545132
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