हैं वो गलियां वही ठिकाने सब।
काश मिलते किसी बहाने सब।।
तुम भी होते तो महफिलें सजती
यार मिलते नये पुराने सब।।
साथ देने को कौन कब आया
सिर्फ़ आये थे आज़माने सब।।
होश आया तो मयकदे लौटे
होके बेख़ुद थे आशियाने सब।।
ये नज़र ये जिगर दिलो-जां भी
हुस्न वालों के हैं ठिकाने सब।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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