एक तो कविताई का रोग ऊपर से चार मित्रों की वाह वाह । पूरी तरह बिगड़ने के लिए इतना बहुत है। जहीर देहलवी कहते हैं कि -

",कुछ तो होते हैं मुहब्बत में जुनू के आसार

और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं।।"

मैं संकोच में पड़ जाता हूं जब कुछ युवा कवि मुझे अपना प्रेरणा स्रोत कहने लगते हैं।ऐसे में मुझे लगता है कि उन सभी कवि मित्रों को अपनी वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जाए। और यह उचित भी है क्योंकि मैं काव्यकला से कत्तई अनभिज्ञ हूं। यमाताराजभानसलगा और रुकनोबहर के लगभग सभी नियम कायदों से अपरिचित।मुझे लगता है कि मेरे सभी युवा मित्रों को अपने अपने शहर/तहसील के उन वरिष्ठ कवियों का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए जिन्हें प्राचीन और अर्वाचीन काव्य साहित्य की समझ हो अथवा जो कविता के व्याकरण से भली भांति परिचित हों।

 ये और बात कि आजकल स्वनामधन्य गुरुओं की बाढ़ सी आयी हुई है। एक दिन शहर की एक प्रतिष्ठित गोष्ठी में  एक सज्जन मिलें। वरिष्ठता के नाते मैंने उन्हें प्रणाम भी किया। वैसे मैं सभी को यथोचित सम्मान देता हूँ। और अपनी कोशिश भर पहले अभिवादन करता हूँ। 

 तो मैंने जैसे ही उन्हें प्रणाम किया उन्होंने कहा और बच्चा कैसे हो?

मैंने कहा , 'सब आपका आशीर्वाद है।"

फिर एक अन्य वरिष्ठ कवि से बताया कि साहनी अपना चेला है। इसे आगे बढ़ाना है" 

 मुझे गर्वानुभूति होती किन्तु उससे पहले ही दूसरे वरिष्ठ कवि ने इशारा किया कि ये सब को अपना चेला बताते रहते हैं।

 यानी कुल मिलाकर स्थिति यह है कि जरा सी चूक हुई तो बेताल विक्रम के कंधे पर लदने में देर नहीं लगाएगा।

जैसे गाँव की बारात में सबै मौसिया बनने को तैयार मिलते हैं। 

फिर भी नई पीढ़ी को वरिष्ठ कवियों को सुनना और समझना चाहिए। 

लेकिन इन सबसे अलग मैं अपने सभी मित्रों से आग्रह करूंगा और यह बात सिर्फ़ उन पर नहीं  हम पर भी उतनी ही लागू होती है कि हमें अच्छी पुस्तकें पढ़नी चाहिए।और यह ज़रूरी भी है। स्वाध्याय हमारे चिन्तन को विराटता प्रदान करता है। अच्छी पुस्तकें केवल कविता की नहीं जिन विषयों में आपकी रुचि हो उन्हें ढूंढकर, इधर उधर से मांगकर  या पुस्तकालयों में जाकर जैसे भी पढ़नी चाहिए।

 और मेरा विश्वास है पढ़ने की आदत एक दिन आपको सफल साहित्यकार ही नहीं सफल इंसान भी बना देगी।

#व्यंग्य

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