भटकने की खातिर सराबें तो लाओ।
मैं सो जाऊंगा पर किताबें तो लाओ।।
मेरे पांव के खार कम हो न जाएं
जरा बेड़ियों की जुराबें तो लाओ।।
चला जाऊंगा घर खुदा के भी लेकिन
मैं बेहोश हूं कुछ शराबें तो लाओ।।
चलो मुझको लेकर के सूली की जानिब
मैं हाज़िर हूं हंसकर अजाबें तो लाओ।।
बना दो मेरे घर को दोजख चलेगा
मगर ज़न्नतों की शराबें तो लाओ।।
सराब/मृगतृष्णा
खार/कांटा
जुराब/मोजा
जानिब/तरफ
अजाब/काटें
दोजख/नर्क
जन्नत/ स्वर्ग
सुरेश साहनी कानपुर
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