यह एक प्रकार का भाव प्रवाह है। इस नज़्म को ग़ज़ल की शक्ल मिल गयी है। लेकिन इसे नज़्म के तौर पर ही पढ़ें।


मुझको मुझमें ढूंढ रहे हो पागल हो।

किस दुनिया में घूम रहे हो पागल हो।।


अपने अपने दिल के अंदर बसते है

तुम तो बाहर खोज रहे हो पागल हो।।


पलकें मूंदो मैं दिल मे दिख जाऊँगा

तुम तो बाहर देख रहे हो पागल हो।।


कहते हो संसार तुम्हारा जब मैं हूँ

फिर भी मुझसे रूठ रहे हो पागल हो।।


तुम न रहोगे क्या तब मैं जी पाऊंगा

किसको तनहा छोड़ रहे हो पागल हो।।


कैसे मिलना होगा तुमसे ख्वाबों में

क्यों रातों में जाग रहे हो पागल हो।।


सिवा तुम्हारे कौन है मेरा दुनिया में

ये सुरेश से पूछ रहे हो पागल हो।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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