अब सरेआम हो रहा हूँ मैं ।

यूँ भी बदनाम हो रहा हूँ मैं।।

कामयाबों में ज़िक्र है मेरा

खूब नाकाम हो रहा हूँ मैं।।

मेरी हस्ती कहाँ रही जब ख़ुद

आपके नाम हो रहा हूँ मैं।।

कैसे आगाज़ कर लूं उल्फ़त में

जबकि अंजाम हो रहा हूँ मैं।।

काश मिल जाये कोई दीदावर

कब से गुलफ़ाम हो रहा हूँ मैं।।

सुरेश साहनी,कानपुर।

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