जबकि घर जैसा घर नहीं लगता।

फिर सफ़र भी सफ़र  नहीं लगता।।


जंग इक ज़िन्दगी से क्या लड़ ली

अब किसी  से भी डर नहीं लगता।।


उसने देखा अजीब नज़रों से

क्या मैं सचमुच बशर नहीं लगता।।


कोई दैरोहरम हुआ गोया

मयकदा सच मे घर नहीं लगता।।


हुस्न तेरा लिहाज़ है वरना

इस ज़माने से डर नहीं लगता।।


इस जगह लोग प्यार करते हैं

ये कहीं से शहर नहीं लगता।।


ऐंठ कर इश्क़ साहनी इसमें

कोई ज़ेरोज़बर नहीं लगता।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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