ये महज़ दर्द की तर्जुमानी नहीं।

रंज़ोग़म ही ग़ज़ल के मआनी नहीं।।


इतनी रोशन जबीं है  ग़ज़ल दोस्तों

नूर का इसके कोई भी सानी नहीं।।


इसकी तारीख़ है खूबसूरत बहुत

आंसुओं से भरी ये  कहानी नहीं।।


मौत को ज़िन्दगी में बदलती है ये

राह देती है ये बदगुमानी नहीं।।


खूबसूरत है इसकी ठहर चाल सब

है हवा में भी ऐसी रवानी नहीं।।


ये ज़मीं पर जुबां है ज़मीं की तो क्या

आसमानी से कम आसमानी नहीं।।


 मीर संजर ओ ग़ालिब सभी ने कहा

ये महज़ साहनी की जुबानी नहीं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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