ये गुरुकुल मदरसे अदब के ठिकाने।

असल में ज़हालत के हैं कारखाने।।

बने  फिर रहे हैं     धरम दीन वाले

न ये राम जाने न अल्लाह जाने।।

ज़रूरत ही क्या है हमें इन सबों की

कहाँ से चले आये ये काट खाने।।

ख़ुदा ने बनाई  ये दुनिया वो दुनिया

मग़र ये लगे हैं ख़ुदा को बनाने।।

ज़न्नत में रहकर के ज़न्नत की ख़ातिर

जुटे हैं ये ज़न्नत को जड़ से मिटाने।।

इन्हें इनकी करनी के फल कब मिलेंगे

ये अल्लाह जाने प्रभू राम जाने।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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