लुट रहा है तेरा जहान प्रभू।।
रोक ले और इम्तिहान प्रभू।।
अपनी किश्ती तेरे हवाले है
क्यों न हो ख़ुद को इत्मिनान प्रभू।।
आंधियों को भी आज समझा दे
इस दिये में है कितनी जान प्रभू।।
आदमी ख़ुद ख़ुदा न हो जाता
उसको होता जो इतना ज्ञान प्रभू।।
घूम फिर कर कफ़स में आना है
और ले लें कहाँ उड़ान प्रभू।।
दब चुके हैं कई महल ऊँचें
जल रहे हैं कई मकान प्रभू।।
ये ज़मीं आपकी अमानत है
इस तरफ़ क्यों नहीं है ध्यान प्रभू।।
आज लंका नहीं यहीं पर हैं
कई दशानन विराजमान प्रभू।।
कोरोनासुर को कौन मारेगा
छोड़ कर आओ आसमान प्रभू।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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