हम मुहब्बत का ग़म मनाते क्या।
अपने दिल की हँसी उड़ाते क्या।।
ख़ुद को हम किसलिये बदल लेते
आप आदत से बाज आते क्या।।
लाद कर ग़म कहाँ कहाँ फिरते
उम्र भर बोझ ही उठाते क्या।।
ख़ैर है मयकदा तलाश लिया
आप से कैफ़ इतना पाते क्या।।
जबकि साकी ने ज़िन्दगी दे दी
फिर किसी और को बुलाते क्या।।
यूँ भी जलवे ज़हां में बिखरे हैं
इक सहारे पे मर न जाते क्या।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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