चौंक उठता हूँ सिहर जाता हूँ।
चलते चलते मैं ठहर जाता हूँ।।
तुम नहीं हो तो यही दीवारें
काटती हैं जो मैं घर जाता हूं।।
दिन गुज़र जाता है जैसे तैसे
रात आँखों में गुज़र जाता हूँ।।
जब संवरता हूँ तेरी बातों से
तेरी यादों से बिखर जाता हूँ।।
ध्यान है घर से निकलता तो हूँ
ये नहीं ध्यान किधर जाता हूँ।।
सुरेश साहनी
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