शब्द प्रकृति है
शब्द विष्णु है
शब्द ब्रम्ह है
पर सीमित है
यह अपनी क्षमताओं से भी
भावों परिभाषाओं से भी
इनसे भी पहले अक्षर है
अक्षर ही किंचित ईश्वर है
ईश्वर भी तो निराकार है
अक्षर से स्वर हैं व्यंजन हैं
स्वर ऊर्जा है
व्यन्जन द्रव्य है
दोनो की युति शिव शक्ति है
शिव शक्ति ही परम ब्रम्ह है
परमब्रह्म ही स्वयम सृष्टि है
स्वयम सृष्टि के चरणों से ही
अगणित धारायें निकली हैं
धाराओं के पंथ आज हम
धर्म समझ कर भृमित दिशा ले
धाराओं में बह जाते हैं
और स्वयम को श्रेष्ठ समझ कर
जाने क्या क्या कह जाते हैं
हमें समझना होगा यह हम
केवल कवि हैं ब्रम्ह नहीं हैं
हमसे भी पहले अक्षर थे
हम न रहेंगे, अक्षर होंगे....
सुरेश साहनी
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