कभी कभी लिखते लिखते मैं थकने लगता हूँ
तुम भी पढ़ते पढ़ते मुझ को ऊब गये हो ना।
अकथ कहानी कहते कहते सोने लगता हूँ
तुम भी मुझको सुनते सुनते ऊँघ रहे हो ना।।
तुम्हें याद करते करते मैं रोने लगता हूँ
तुम मेरे इस पागलपन पर हँसते होंगे ना।।
उन गलियों में आते जाते ठिठका करता हूँ
पर तुम अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हो ना।।
मैं तेरी यादों में जागा जागा रहता हूँ
तुम दुनियादारी से बेसुध सो जाते हो ना।।
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