काहे की इंसानियत काहे का कानून।

बुलडोजर से हो रहा लोकतंत्र का खून।।

लोकतन्त्र का खून खेलते सत्ताधारी।

मजहब मजहब खेल रहे हैं अत्याचारी।।

पक्षपात से रहित अतिक्रमण को सब ढाहे

ऐसा  हो यदि न्याय मनुजता रोये काहे।।

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