कहने को तनहा हूँ मैं।
बहुतों का अपना हूँ मैं।।
झरने सा गिरता हूँ मैं।
बादल बन उठता हूँ मैं।।
जीवन भर का सोया मन
मरघट में जागा हूँ मैं।।
सर्व सुलभ हूँ मैं फिर भी
कितनों का सपना हूँ मैं।।
उतना नहीं मुकम्मल हूँ
जैसा हूँ जितना हूँ मैं।।
भीड़ नहीं ये दुनिया है
इसका ही हिस्सा हूँ मैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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