एक स्टेशन ही है श्मशान भी।

इससे गुजरे हैं स्वयं भगवान भी।।


ज़िंदगी भर सब कहीं भटका किया

तब कहीं पहुंचा यहां इंसान भी।।


इस क़दर इब्लिस गालिब है यहां

आदमी की खो गई पहचान भी।।


आज है यह किस कदर उलझी हुई

थी यही दुनिया कभी आसान भी।।


जानते हैं सब कि जाना है उन्हें

उस पे हैरत है कि हैं अनजान भी।।

- सुरेश साहनी कानपुर


पांडिचेरी तट पर मैं और बब्बन प्रसाद जी ( जो अब नहीं रहे)

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