वफ़ा की राह वाले ही मिले हैं।

हमें परवाह वाले ही मिले हैं।।


जहां मिट्टी खंगाली है बशर ने

वहाँ अल्लाह वाले ही मिले हैं।।


कहाँ मिलते हैं सच्चे दीन वाले

हमें तनख्वाह वाले ही मिले हैं।।


ये दो अक्षर बचाने को ग़मों से

सहारे काह वाले ही मिले हैं।।


कहाँ मिलते हैं अब वो पीरो- मुर्शिद

फ़क़त दरगाह वाले ही मिले हैं।।


ख़ुदा वाले कहाँ दरवेश हैं अब

गदाई शाह वाले ही मिले हैं।।


यही हासिल है अपने साहनी का

सफ़र जाँकाह वाले ही मिले हैं।।


काह- तिनका

दरवेश- संत ,फकीर

गदाई-  फकीर

जाँकाह- जानलेवा , भयावह


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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