ज़िन्दगी झूठ तो नहीं फिर भी

झूठ जितनी ही है हसीं फिर भी।।


ताब उतना नहीं रहा जबकि 

प्यास  बाकी है कुछ कहीं  फिर भी।।


दर वो काबा नहीं न काशी था

हैफ़ झुकती रही जबीं फिर भी।।


उस गली से तो कब के उठ आये

रह गया दिल  मग़र वहीं फिर भी।।


जबकि उम्मीद आसमां से थी

साथ देती गयी ज़मीं फिर भी।।


क्या अजब है कि हम भी आशिक थे

पर   रहे हुस्न की तईं फिर भी।।


ज़िन्दगी खुल के जी गयी जबकि

हसरतें हैं कि रह गईं फिर भी।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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