यार कुछ इस तरह क़रीब रहा।
गो कि मैं ही मेरा रक़ीब रहा।।
शुक्र है ग़म तो मिल गए उसके
कैसे कह दूं मैं बदनसीब रहा।।
इश्क़ होता नहीं अयाँ कैसे
यार ही फितरतन ख़तीब रहा।।
दिल मे था और दुश्मने- जॉ भी
मेरा क़ातिल मेरा तबीब रहा।।
उसके हिस्से में पालकी तय थी
मेरे हिस्से मेरा सलीब रहा।।
हश्र के रोज लूट गया होता
पर मेहरबां मेरा हसीब रहा।।
लुत्फ़-ए-मुन्तज़िर न समझोगे
साहनी सच मे खुशनसीब रहा।।
रक़ीब/प्रतिस्पर्धी
अयाँ/प्रकट
फितरतन/आदत से
ख़तीब/प्रचारक, ख़ुत्बा करने वाला,
तबीब/चिकित्सक
हश्र/निर्णय का दिन, परिणाम
हसीब/हिसाब रखने वाला, नबी
लुत्फ़/आनंद
मुन्तज़िर/इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment