एक एक कर हो रही बस्ती यूँ वीरान।
जैसे होते थे कभी गांवों के शमशान।।
सकल देश को मिल रहा क्योटो जैसा ठाट।
देश हमारा लग रहा मणीकर्णिका घाट।।
इन्तज़ार करता रहा जब तक रहे चुनाव।
कोविड ने मतदान के बाद पसारे पाँव।।
मत गणना के साथ ही बदल गया परिवेश।
जनता क़्वारन्टीन है कोविड हुआ नरेश।।
कामरेड कर लीजिए इस सच को स्वीकार।
अब की जनता चाहती पूँजी की सरकार।।
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