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Showing posts from July, 2013

अशोक रावत की ग़ज़लें

अदावत में तो उसकी आज भी अंतर नहीं आया, तअज्जुब है बहुत दिन से कोई पत्थर नहीं आया. उसे दो मील पैदल छोड़ने जाता था मैं बस तक, मैं उसके घर गया वो गेट तक बाहर नहीं आया. जहाँ भी देखिए बैठे हैं लाइन तोड़ने वाले, मैं लाइन में लगा था इस लिये नम्बर नहीं आया. चढ़ा हूँ देख कर हर एक सीढ़ी सावधानी से, जहाँ पर आज हूँ मैं उस जगह उड़ कर नहीं आया. ज़माने की हवाओं का असर इतना ज़ियादा है, किसी त्योहर पर बेटा पलट कर घर नहीं आया. किसी को मश्वरा क्या दूँ कि ऐसे जी कि वैसे जी, मेरी ख़ुद की समझ में जब ये जीवन भर नहीं आया.

गिरगिट जैसा रंग बदलना

  प्यार उसे आता है करना ।  मैंने तो इतना ही जाना ,॥  ,पल में माशा, पल में तोला  उसकी फितरत अल्ला -2 ,॥  लाज -शर्म से बिलकुल हट के  पल में उठना ,पल में गिरना ,॥  रूठा -रूठी ,मान -मनौव्वल  प्यार -मुहब्बत ,खेल खिलौना,॥  सच पूछो तो जादू ही है , गिरगिट जैसा रंग बदलना ,॥ रात गुनाहों की सोहबत में , और सवेरे तौबा -तौबा ॥