भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील
अमवा के बारी में बोले रे कोयिलिया ,आ बनवा में नाचेला मोर|
पापी पपिहरा रे पियवा पुकारे,पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे,
छलकल गगरिया मोर निरमोहिया रे,छलकल गगरिया मोर||...........छलकल ....
सुगवा के ठोरवा के सुगनी निहारे,सुगवा सुगिनिया के ठोर,
बिरही चकोरवा चंदनिया निहारे, चनवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे,.छलकल ....
नाचेला जे मोरवा ता मोरनी निहारे जोड़ीके सनेहिया के डोर,
गरजे बदरवा ता लरजेला मनवा भीजी जाला अंखिया के कोर निरमोहिया रे,.छलकल ....
घरवा में खोजलीं,दलनवा में खोजलीं ,खोजलीं सिवनवा के ओर ,
खेत-खरिहनवा रे कुल्ही खोज भयिलीं, पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल ....
nice line thanks
ReplyDeletebest restaurant in Lucknow
aapko bhi dhanyvad Varun
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