एक अपूर्ण ग़ज़ल
थे उल्फ़त के मारे हम।
दिल के हाथों हारे हम।।
फ़ितरत के ध्रुव तारे हम।
किस्मत से बंजारे हम।।
सूरज चन्दा तारे हम।
अम्मा के थे सारे हम।।
तब जितने थे न्यारे हम।
अब उतने बेचारे हम।।
गंगा जल से प्यारे हम।
आज हुए क्यों खारे हम।।
घर के राजदुलारे हम।
जाते किसके द्वारे हम।।
उल्फ़त के उजियारे हम।
फिर भी रहे अन्हारे हम।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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