वक़्त को बेरहम नहीं कहते।

हर किसी को सनम नहीं कहते।।


आशिक़ी में भरम तो होते हैं

आशिकी को भरम नहीं कहते।।


क्या हुआ कुछ हमें बताओगे

ज़ख्म दिल के सितम नहीं कहते।।


मुस्कुरा कर नज़र झुका लेना

यार इसको रहम नहीं कहते।।


वो मसीहा है इस ज़माने का

सब को कहने दो हम नहीं कहते।।


आपके ग़म हैं इश्क़ के हासिल

और हासिल को ग़म नहीं कहते।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है