फकीरों जैसी उसकी बानगी थी।
मेरे राजा में इतनी सादगी थी।।
न जाने कौन सा मजहब था उसका
फितरत में तो उसके बंदगी थी।।
सियासत तो अज़ल से ऐबगर है
मगर उसके जेहन में ताजगी थी।।
तेरे आने से कुछ बेहतर हुआ था
वगरना हर तरफ चोरी ठगी था।।
हुकूमत अब गरीबों की बनेगी
तेरे आने से ये आशा जगी थी।।
चलन जिसका नहीं था उस समय भी
तेरी लौ देश सेवा में लगी थी।।

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