बेशक हमको ही सब करना चहिए था।
मर तो रहे हैं कितना मरना चहिए था।।
मौला से , शैतां से रहती दुनिया से
क्या सबसे हमको ही डरना चहिए था।।
चढ़ कर आदमजाद क़मर तक जा पहुंचा
रब को भी इक रोज उतरना चहिए था।।
मालिक तेरी भी कुछ जिम्मेदारी थी
क्या ख़ाली इंसान सुधरना चहिए था।।
आसमान वाले हम जिसमें जीते हैं
इस दोजख से तुझे गुजरना चहिए था।।
सुरेश साहनी कानपुर
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