विप्र धेनु सुर सन्त धरा को सुख अविराम दिया।।

उस जननी को नमन जगत को जिस ने राम दिया।।


हुए अवतरित जिस आँचल में उसको कोटि नमन

धन्य धन्य कौशल्या माई तुमको सतत नमन

दिया राम को जन्म नृपति को चारों धाम दिया।।


जिस माँ ने ममता के टुकड़े होने नहीं दिए

राम काज हित जिसने दो दो बेटे सौंप दिये।

पल दो पल हित नहीं अहर्निश आठो याम दिया।।


उन्हें नीति से सकल जगत के त्रास मिटाना था

कड़ी साधना से सुत को श्रीराम बनाना था

यूँही नहीं था नृप ने उनको आसन वाम दिया।। 


मातु सरस्वति का आग्रह माँ टाल नहीं पायी

जग को लगा हुई रानी से कितनी अधमाई

हुई कलंकित स्वयं किन्तु रघुकुल को नाम दिया।।


कभी कभी निज सुत को मायें आँख दिखाती हैं

डांट डपट  बालक को  सच्ची राह दिखाती हैं

इसी ताड़ना को ने  

वही किया माँ ने

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