सूर सूर हैं चन्दर तुलसी।
भान ज्ञान रत्नाकर तुलसी।।
राम नाम को ओढ़ लपेटे
राम नाम की चादर तुलसी।।
रोम रोम तन मन अन्तस् तक
भरी नाम की गागर तुलसी।।
राम ग्रन्थ अवतार हुआ जब
हुलसी माँ सुत पाकर तुलसी।।
हुए राम घर घर स्थापित
सदा प्रतिष्ठित घर घर तुलसी।।
तुलसी जैसे पूजी जाती
पाते वैसा आदर तुलसी।।
हे कवि कुल सिरमौर गुसाईं
कर लो अपना चाकर तुलसी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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