रात बदली रही चाँद करता भी क्या।
मन मचलता रहा और करता भी क्या।।
रात ढलती रही वस्ल टलता रहा
बस फिसलता रहा वक्त करता भी क्या।।
मुन्तज़िर दिल के एहसास को क्या कहें
लुत्फ बढ़ता रहा हैफ़ करता भी क्या।।
हिज्र की गर्मियां जां जलाती रही
ज़िस्म जलता रहा हाय करता भी क्या।।
फिर सुबह हो गयी चाँद भी छुप गया
यूँ तड़पता रहा इश्क़ करता भी क्या।। साहनी
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