अमां तुम किसको ताना दे रहे हो।

किसे जाकर उलहना दे रहे हो।।


गदा को आस्ताना दे रहे हो।

फकीरों को ठिकाना दे रहे हो।।


कोई औक़ाफ़ है मेरी कमाई

जताते हो ख़ज़ाना दे रहे हो।।


अमां सरकार तुम मालिक नहीं हो

कि अपने घर से खाना दे रहे हो।।


 न बोलो तुम चलाते हो ख़ुदाई

किसे तुम आबोदाना दे रहे हो।।


ख़ुदा  भी क्यों रहे बूढ़े हृदय में

अब उसको घर पुराना दे रहे हो।।


ख़ुदा बेघर कहाँ है साहनी जी

ये किसको आशियाना दे रहे हो।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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