तुम सखी बनकर मिलो तो

तुम सहज होकर मिलो तो

हर अहम प्रिय दूर रख कर

स्वत्व को खोकर मिलो तो......


चार दिन की ज़िंदगी मे

हमने अवगुण्ठन न खोले

चाह कर मैं कह न् पाया

संकुचनवश तुम न बोले


द्वार मनमंदिर के खोलो

बन के सुख आगर मिलो तो.....


क्या है राधा कृष्ण क्या है

रास क्या है जानती हो

प्रेम क्या है योग क्या है

सच कहो पहचानती हो


तुम मिलो तो गांव का 

ग्वाला बने नागर मिलो तो......


उम्र के इस मोड़ पर भी

तुम नदी के उस किनारे

आज मौका है बुलाते 

प्रेम की गंगा के धारे


फागुनी संदर्भ लेकर

आज इस तट पर मिलो तो........


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है