आपका साथ जबसे छूटा है।
वक़्त ने बार बार लूटा है।।
ज़ेरोबम हैं हमारी किस्मत के
सब ये समझे हैं बेल बूटा है।।
संगदिल बेसबब नही हूँ मैं
इम्तहानों ने जम के कूटा है।।
यूँ ही मन्नत नहीं हुई पूरी
कोई तारा कहीं तो टूटा है।।
बाढ़ आई है उस नदी में या
आपका इज़तेराब फूटा है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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