दिल लगाने के लिए तेरी गली आया था।

ज़ख़्म खाने के लिए तेरी गली आया था।।


जां लुटाने के लिए तेरी गली आया था।

तुझको पाने के लिए तेरी गली आया था।।


मैं तो  आया था तेरा हाथ मुझे मिल जाये

कब ख़ज़ाने के लिए तेरी गली आया था।।


दिल से चाहो तो ख़ुदाई भी मदद करती है

ये बताने के लिए  तेरी गली आया था ।।


तुझसे मतलब है फ़क़त तेरी रज़ा से निस्बत

कब ज़माने के लिए तेरी गली आया था।।


तू अगर रूठ भी जाता तो मुनासिब होता

मैं मनाने के लिए तेरी गली आया था।।


मैं किसी और के कहने में भला क्या आता

दिल दीवाने के लिए तेरी गली आया था।।


ज़िन्दगी तूने मुझे क्यों दी ग़मों की दौलत

ग़म मिटाने के लिए तेरी गली आया था।।


साहनी मयकदे जाता तो सम्हल जाता पर

डगमगाने के लिए तेरी गली आया था।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा